Property Rights: हाईकोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति विवाद पर एक अहम फैसला सुनाया है। जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है और उसकी रजिस्ट्री कराता है, तो उस संपत्ति पर उसके परिवार के अन्य सदस्यों का भी अधिकार होगा।
कब नहीं मिलेगा परिवार को हक?
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि महिला यह साबित कर सकती है कि उसने वह संपत्ति अपनी आय से खरीदी है, तो उस पर केवल उसका ही अधिकार होगा। लेकिन यदि महिला गृहिणी है और उसकी स्वयं की कोई कमाई का स्रोत नहीं है, तो वह संपत्ति संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति मानी जाएगी और परिवार के अन्य सदस्यों का भी उस पर अधिकार होगा।
पिता की संपत्ति में बेटे ने मांगा हिस्सा
इस मामले में याचिकाकर्ता सौरभ गुप्ता ने अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति में एक चौथाई हिस्से की मांग करते हुए सिविल मुकदमा दायर किया था। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें उस संपत्ति में सह-हिस्सेदार घोषित किया जाए। क्योंकि यह संपत्ति उनके दिवंगत पिता ने खरीदी थी।
संपत्ति पर पूरे परिवार का अधिकार
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि चूंकि संपत्ति उनकी मां यानी दिवंगत पिता की पत्नी के नाम पर खरीदी गई थी। इसलिए वह संपत्ति संयुक्त रूप से परिवार की संपत्ति मानी जानी चाहिए। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि इस संपत्ति को किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित करने पर रोक लगाई जाए।
मां ने दी संपत्ति पर अधिकार की सफाई
मामले में याचिकाकर्ता की मां, जो प्रतिवादी थीं। याचिकाकर्ता की मां ने अदालत में प्रस्तुत अपने बयान में कहा कि संपत्ति उनके पति ने उन्हें उपहार स्वरूप दी थी। क्योंकि उनकी स्वयं की कोई आय नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया कि उनके पति ने यह संपत्ति पारिवारिक भलाई के लिए उनके नाम पर खरीदी थी।
निचली अदालत का फैसला और हाईकोर्ट की टिप्पणी
इस मामले में निचली अदालत ने अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद बेटे ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि पत्नी की स्वयं की आय का कोई प्रमाण नहीं है, तो वह संपत्ति प्रथम दृष्टया संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति मानी जाएगी। ऐसे मामलों में संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होगा।
क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम?
भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति का वितरण परिवार के सदस्यों के बीच समान रूप से किया जाए। इस अधिनियम के तहत, यदि संपत्ति पति के नाम पर खरीदी गई हो और बाद में पत्नी के नाम स्थानांतरित की गई हो, तो उसे पारिवारिक संपत्ति माना जाएगा और परिवार के अन्य सदस्यों का भी उस पर दावा होगा।
भविष्य में इस फैसले का प्रभाव
हाईकोर्ट का यह फैसला भविष्य में पारिवारिक संपत्ति से जुड़े विवादों में एक मिसाल बनेगा। यह निर्णय उन मामलों में भी लागू हो सकता है, जहां पति ने अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदी हो। लेकिन इसका उपयोग पूरे परिवार द्वारा किया जा रहा हो।