School Recognition: मध्य प्रदेश के निजी स्कूलों के समक्ष एक बड़ी चुनौती उपस्थित हो गई है. स्कूल शिक्षा विभाग और राज्य शिक्षा केंद्र के नए नियमों के चलते हजारों प्राइवेट स्कूलों की मान्यता अधर में लटक गई है. इस स्थिति के लिए प्रशासन की सख्त शर्तें और कथित लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. निजी स्कूल संगठन के अध्यक्ष अजीत सिंह के अनुसार, इन नियमों से कई स्कूल संचालकों को अपने स्कूलों की मान्यता बनाए रखने में कठिनाइयां आ रही हैं.
हजारों स्कूलों पर लटकी मान्यता रद्द होने की तलवार
प्रदेश में करीब 20% प्राइवेट स्कूल, जिनकी संख्या 6 हजार से अधिक है, अब तक मान्यता के लिए आवेदन नहीं कर सके हैं. राजधानी भोपाल में भी 1400 स्कूलों में से 232 स्कूलों ने मान्यता के लिए अपने आवेदन नहीं दिए हैं. यह स्थिति यदि जारी रही तो लगभग 18 हजार प्राइवेट स्कूलों के बंद होने की आशंका है, जिसका सीधा असर लाखों छात्रों पर पड़ेगा. विशेषकर उन छात्रों पर जो कम फीस वाले स्कूलों में पढ़ते हैं.
मान्यता के लिए आवेदन करने वाले स्कूलों की मुश्किलें
जिन स्कूलों ने मान्यता के लिए आवेदन किया है, उनमें से कई के दस्तावेज अधूरे हैं या वे नए नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं. इसके चलते भी मान्यता प्राप्त करने में कठिनाइयां आ रही हैं. इस पर राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से कोई स्पष्ट रुख अभी तक सामने नहीं आया है, जिससे स्कूल संचालकों की चिंता और भी बढ़ गई है.
निजी स्कूल संगठन की जनता से अपील
निजी स्कूल संगठन ने प्रदेशवासियों से अपील की है कि वे इस मामले में सरकार से हस्तक्षेप करने और शिक्षा व्यवस्था को बचाने के लिए आगे आएं. संगठन का मानना है कि यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो हजारों निजी स्कूल बंद हो सकते हैं और लाखों बच्चों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा.
सरकारी स्कूलों की स्थिति पर भी उठे सवाल
प्राइवेट स्कूल संचालकों ने यह भी आरोप लगाया है कि सरकार निजी स्कूलों पर तो सख्ती दिखा रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है. प्रदेश के अनेक सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है और शिक्षकों की भारी कमी है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है.