Property Rules: समय के साथ भारतीय समाज में पारिवारिक संरचना और उसके मूल्यों में व्यापक परिवर्तन आया है। पहले जहां बहु-पीढ़ी परिवार आम थे, वहीं आधुनिकता और नई पीढ़ी की अलग-अलग इच्छाओं ने सिंगल फैमिली सिस्टम को बढ़ावा दिया है। इस बदलाव ने माता-पिता और बच्चों के बीच संबंधों में नई चुनौतियां पेश की हैं। कई बार ये चुनौतियां अपमान और घृणा के रूप में सामने आती हैं, जो बुजुर्गों को कानूनी राहत पाने के लिए प्रेरित करती हैं।
सीनियर कपल की याचिका और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
हाल ही में, एक बुजुर्ग दंपति ने सुप्रीम कोर्ट में अपने बेटे को घर से बेदखल करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि बेटे के व्यवहार से उन्हें मानसिक पीड़ा और उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। इस याचिका में उन्होंने 2007 के ‘Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act’ का हवाला दिया, जिसे वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था।
कानूनी पहलुओं पर गौर
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिलचस्प फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह कानून वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण पाने का अधिकार देता है, लेकिन इसमें उन्हें बेदखली का अधिकार स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया है। इस आधार पर, कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। इस निर्णय के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया कि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन घर से बेदखल करने का अधिकार उन्हें नहीं है।
सामाजिक और मानवीय पहलू
इस फैसले से एक बड़ा सामाजिक सवाल भी खड़ा होता है। जब परिवार के भीतर संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं, तो समाज और राज्य की भूमिका क्या होनी चाहिए ? यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं है बल्कि मानवीय संवेदनाओं से भी जुड़ा है। ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों की गरिमा और सम्मान को बनाए रखना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी बन जाती है।