Jobs Working Hours: भारत में हाल के दिनों में कामकाजी घंटों को लेकर बहस ने जोर पकड़ लिया है. इसकी शुरुआत तब हुई जब लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यम ने कर्मचारियों से लंबे समय तक काम करने और रविवार को भी काम करने का सुझाव दिया. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि उत्पादकता बढ़ाने के लिए काम के घंटे बढ़ाना आवश्यक है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि कर्मचारी अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकते हैं. बजाय इसके कि वे इसे घर पर व्यर्थ गंवाएं.
यह विचार पहली बार नहीं आया है. 2023 में इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी भारतीयों को 70 घंटे का कार्य सप्ताह अपनाने की सलाह दी थी. उनका कहना था कि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने और तेज प्रगति के लिए यह कदम उठाना चाहिए.
कामकाजी घंटों को बढ़ाने का तर्क
- उत्पादकता में वृद्धि: लंबे समय तक काम करने से उत्पादन बढ़ेगा और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: अधिक काम के जरिए भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं.
- तेजी से विकास: काम के घंटों को बढ़ाने से परियोजनाओं को समय पर पूरा किया जा सकेगा.
- निजी दक्षता: अतिरिक्त काम से कर्मचारी अपनी क्षमता को अधिकतम स्तर तक पहुंचा सकते हैं.
आलोचना और कार्य-जीवन संतुलन की बहस
हालांकि लंबे कामकाजी घंटों का विचार हर किसी को सही नहीं लगता. आलोचकों का कहना है कि:
- कार्य-जीवन संतुलन: लंबे कामकाजी घंटे से कर्मचारी का व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होता है.
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: ज्यादा काम तनाव, थकावट और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है.
- कार्य क्षमता पर असर: लंबे समय तक काम करने से कर्मचारी की कार्य क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
- परिवार और सामाजिक जीवन: रविवार को काम करने से परिवार और सामाजिक रिश्तों पर असर पड़ता है.
भारत में कामकाजी घंटे
भारत में कामकाजी घंटों को लेकर न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 और कारखाना अधिनियम, 1948 जैसे कई कानून मौजूद हैं.
- न्यूनतम वेतन अधिनियम: प्रति दिन अधिकतम 9 घंटे काम. एक सप्ताह में 40-48 घंटे का कार्य समय. एक घंटे का ब्रेक अनिवार्य.
- कारखाना अधिनियम: प्रति सप्ताह 48 घंटे से अधिक काम करने पर डबल वेतन.
- दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम: कामकाजी दिनों के बीच आराम अवधि अनिवार्य.
- भारत संहिता: ओवरटाइम सहित कुल कामकाजी घंटे 10 घंटे प्रति दिन.
क्या भारत 70-90 घंटे के कार्य सप्ताह की ओर बढ़ सकता है?
भले ही कुछ कॉरपोरेट लीडर्स लंबे कामकाजी घंटों का समर्थन कर रहे हों. लेकिन यह बदलाव करना इतना आसान नहीं है. इसके कई कारण हैं:
- कानूनी प्रतिबंध: भारत में कामकाजी घंटे 48 घंटे प्रति सप्ताह तक सीमित हैं. इसे बदलने के लिए व्यापक कानूनी संशोधन की आवश्यकता होगी.
- कर्मचारी कल्याण: कर्मचारी संगठनों और ट्रेड यूनियनों का इस विचार का कड़ा विरोध हो सकता है.
- अंतरराष्ट्रीय मानक: अधिकतर विकसित देशों में कामकाजी घंटे 40-48 तक सीमित हैं. भारत को इन मानकों का पालन करना होगा.
- सांस्कृतिक चुनौतियां: भारतीय समाज में परिवार और व्यक्तिगत समय को महत्व दिया जाता है. इसे नजरअंदाज करना मुश्किल होगा.
कंपनियों का रवैया
भारत में कई कंपनियां विशेषकर आईटी और स्टार्टअप सेक्टर में पहले ही कर्मचारियों से अपेक्षा करती हैं कि वे अतिरिक्त घंटे काम करें. हालांकि इनमें से कई कंपनियां कर्मचारियों को ओवरटाइम का भुगतान नहीं करतीं और उन्हें “एक्जीक्यूटिव” श्रेणी में डालकर ओवरटाइम नियमों से बचने की कोशिश करती हैं.
नए श्रम कोड
भारत में नए श्रम कोड लागू करने की योजना है. जिसमें कामकाजी घंटों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जा सकते हैं:
- पांच दिवसीय कार्य सप्ताह: सप्ताह में पांच दिन काम और दो दिन छुट्टी अनिवार्य.
- कामकाजी घंटे का पुनः निर्धारण: प्रति दिन 12 घंटे तक काम की अनुमति लेकिन कुल सप्ताहिक घंटे 48 तक सीमित.
- अधिक ओवरटाइम: ओवरटाइम घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव.
कर्मचारी संगठनों की भूमिका
- कर्मचारी संगठनों और ट्रेड यूनियनों का कहना है कि लंबे कामकाजी घंटे लागू करने से पहले:
- व्यक्तिगत जीवन और काम के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए.
- कर्मचारियों को उचित वेतन और ओवरटाइम भत्ता मिलना चाहिए.
- कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.