Bussiness Idea: भारतीय कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हो रही है. वन विभाग ने अब बांस की खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है, जिसे ‘हरा सोना’ भी कहा जाता है. इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए विभाग ने अपनी नर्सरी में बांस के उच्च क्वालिटी के पौधे तैयार किए हैं और इन्हें किसानों को मुहैया कराने की योजना बनाई है. इस पहल से किसानों को नई तकनीकी जानकारी और ट्रेनिंग भी प्रदान की जाएगी जिससे उन्हें अपनी खेती को विस्तार देने में मदद मिलेगी.
बांस की खेती के लाभ
बांस की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. इस फसल की मांग बाजार में ज्यादा है जिसमें फर्नीचर, सजावटी सामग्री, गिलास और लकड़ी के बर्तन शामिल हैं. वन विभाग का कहना है कि बांस की खेती से न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि यह स्थानीय जिलों के आर्थिक विकास में भी योगदान देगा. इसके अलावा, बांस की खेती के लिए उपजाऊ जमीन की आवश्यकता नहीं होती, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है.
बंजर जमीन पर बांस की खेती
बांस की एक विशेषता यह है कि इसे बंजर जमीन पर भी उगाया जा सकता है. इसकी कम पानी की आवश्यकता और लंबी उत्पादन अवधि इसे अन्य फसलों की तुलना में अधिक सुविधाजनक और लाभकारी बनाती है. बांस की लोकप्रिय प्रजातियां जैसे कि बंबूसा ऑरनदिनेसी और मेलोकाना बेक्किफेरा जैसे प्रजातियां बंजर जमीनों पर भी अच्छी उपज देने में सक्षम हैं.
बांस की खेती की तकनीकी जानकारी
बांस के पौधे लगाने की तकनीक भी काफी सरल है. एक हेक्टेयर जमीन पर लगभग 1500 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिसमें पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी तीन मीटर होनी चाहिए. इससे प्रत्येक पौधे को पर्याप्त स्थान मिलता है और वे बेहतर विकसित हो सकते हैं.
बांस की खेती का भविष्य और किसानों के लिए अवसर
बांस की खेती का अर्थशास्त्र किसानों के लिए काफी आशाजनक है. एक हेक्टेयर में खेती से 4 से 5 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है. इस खेती से न केवल वित्तीय लाभ होता है, बल्कि यह बंजर जमीन को भी उपयोग में लाने का एक उत्तम तरीका है. इस प्रकार, बांस की खेती न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करती है, बल्कि यह पर्यावरणीय स्थिरता में भी योगदान देती है.