Property Rules: विवाह के बाद महिलाओं को अक्सर अपने नए घर में स्थानांतरित होना पड़ता है, जो उनकी ससुराल होती है. संपत्ति के अधिकार की बात आने पर अक्सर विवादों की स्थिति उत्पन्न होती है, विशेषकर सास-ससुर की संपत्ति को लेकर. आइए जानते हैं भारतीय कानून के अनुसार बहुओं के अधिकार क्या हैं.
पति की संपत्ति पर बहू के अधिकार
आम धारणा के विपरीत, शादी के बाद महिला को अपने पति की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता है, जब तक कि संपत्ति खुद की अर्जित (self-earned) न हो. पति की संपत्ति पर उसका पूर्ण अधिकार होता है और वह इसे अपनी इच्छानुसार बेच, दान कर सकता है या वसीयत (will) के जरिये किसी को सौंप सकता है.
सास-ससुर की संपत्ति पर बहू का अधिकार
भारतीय कानून के अनुसार, बहू का अपने सास-ससुर की संपत्ति पर कोई सीधा कानूनी अधिकार (legal claim) नहीं होता है. सास-ससुर की जीवित रहते उनकी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार होता है और वे इसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित कर सकते हैं. मृत्यु के उपरांत, यदि कोई वसीयत नहीं होती, तो संपत्ति पर बेटे का अधिकार होता है, और बेटे के न रहने पर बहू इसकी हकदार हो सकती है.
पैतृक संपत्ति पर बहू के अधिकार
यदि संपत्ति पैतृक होती है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत बहू को पति की मृत्यु के बाद उस संपत्ति पर उसके बच्चों के संरक्षक के रूप में नियंत्रण मिल सकता है.
घरेलू हिंसा अधिनियम और बहू के रहने का अधिकार
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत, बहू को ससुराल में रहने का अधिकार मिलता है, चाहे वह संपत्ति पति के माता-पिता की क्यों न हो. यह अधिकार केवल निवास (residence) तक सीमित होता है और इसमें संपत्ति के मालिकाना हक का कोई दावा शामिल नहीं होता है.
न्यायालय द्वारा बहू के अधिकारों की सुरक्षा
यदि बहू को ससुराल से निकालने का प्रयास किया जाता है, तो वह न्यायालय में घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत अपने रहने के अधिकार के लिए अपील कर सकती है. यह घर में उसके निवास की गारंटी देता है, परंतु संपत्ति का मालिकाना हक नहीं.