EMI Plan: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिससे देश में लोन देने वाली संस्थाओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इस निर्णय के अनुसार, बच्चों और तलाकशुदा पत्नी की देखभाल करना ईएमआई भुगतान से अधिक महत्वपूर्ण माना गया है.
पति की प्राथमिकताओं का नया क्रम
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक पति के लिए उसकी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण सबसे पहले आता है. किसी भी लोन धारक की पहली प्राथमिकता उनके अलग हो चुके परिवार को गुजारा भत्ता देना होगा (alimony before loan repayments). इस आधार पर, एक व्यक्ति को पहले अपने परिवार की जरूरतें पूरी करनी होंगी उसके बाद ही वह अन्य वित्तीय दायित्वों की ओर ध्यान दे सकता है.
पति की अपील खारिज
एक विशेष मामले में, जहाँ एक पति ने दावा किया कि वह अपनी पत्नी को गुजाराभत्ता नहीं दे सकता क्योंकि उसकी डायमंड फैक्टरी में भारी नुकसान हुआ है, सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया (dismissal of financial hardship claim). अदालत ने जोर देकर कहा कि व्यक्तिगत वित्तीय संकट को परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारियों से ऊपर नहीं माना जा सकता.
पत्नी और बच्चों का पहला हक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्धारित किया कि तलाकशुदा पत्नी और बच्चों की देखभाल पति की पहली और मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए. पत्नी की संपत्ति पर पहला अधिकार है और उसके बाद ही किसी तृतीय-पक्ष को दावा करने का अधिकार होता है .
गुजारा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने गुजाराभत्ता को जीने के अधिकार से जोड़ते हुए इसे एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है. इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि गुजाराभत्ता भुगतान न केवल नैतिक बल्कि कानूनी दायित्व भी है .
अदालत की संभावित कार्रवाई
यदि कोई पति गुजाराभत्ते का भुगतान करने में विफल रहता है, तो अदालत उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकती है. इसमें पति की संपत्ति को बेचने का भी प्रावधान है ताकि गुजाराभत्ते का भुगतान सुनिश्चित किया जा सके .