School Syllabus Book: भारत में निजी स्कूलों द्वारा नियमों का खुलेआम उल्लंघन एक बड़ी समस्या बन चुकी है. यहां तक कि शिक्षा विभाग भी इस संबंध में कोई सख्त कदम उठाने में असमर्थ नजर आता है. स्कूलों द्वारा किताबें बेचने का मामला बहुत ही आम हो गया है, जिसे रोकने में शिक्षा विभाग विफल रहा है.
शिक्षा विभाग की ढीली कार्यवाही
शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए निर्देशों का पालन करने की बजाय, कई निजी स्कूल इन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. इसके चलते, न केवल अभिभावकों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा है, बल्कि शिक्षा के मानकों पर भी प्रश्नचिह्न लग रहा है.
अभिभावकों के सामने आर्थिक चुनौतियाँ
कई स्कूलों द्वारा पाठ्यपुस्तकों की कीमतें अत्यधिक बढ़ा दी गई हैं, जिससे अभिभावकों के लिए इन्हें खरीद पाना मुश्किल हो गया है. जूनियर कक्षाओं के लिए किताबों की कीमतें 5000 रुपये तक पहुंच गई हैं, जो कि बहुत अधिक है.
नियमों का अनुपालन और शिक्षा विभाग की भूमिका
शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों को जारी किए गए निर्देश अक्सर केवल कागजी साबित होते हैं. इन निर्देशों का मकसद यह होता है कि स्कूल किसी विशेष दुकान से किताबें या यूनिफॉर्म खरीदने के लिए दबाव न डालें और फीस में अनावश्यक वृद्धि न करें. हालांकि, इन निर्देशों का पालन करने में स्कूलों की अनिच्छा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.