Bank Loan defaulter: जब कोई व्यक्ति लोन लेता है तो उसकी चुकौती के लिए ईएमआई का भुगतान समय पर करना होता है. ईएमआई में चूक होने पर बैंक तुरंत सक्रिय हो जाता है और ग्राहक को अपनी निगरानी में ले लेता है. यह पहला कदम उनके लिए एक चेतावनी के रूप में काम करता है कि आगे क्या कदम उठाये जा सकते हैं.
कानूनी कार्रवाई की दिशा
यदि कोई लोन डिफॉल्टर लगातार ईएमआई नहीं चुका पाता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई शुरू हो सकती है. आरबीआई के निर्देशानुसार, बैंक इसे गंभीरता से लेते हैं और डिफॉल्टर के खिलाफ सिविल कोर्ट में मुकदमा चलाने का अधिकार रखते हैं. इससे डिफॉल्टर की वित्तीय स्थिति और भी जटिल हो सकती है.
पर्सनल लोन और वसूली की प्रक्रिया
पर्सनल लोन के मामले में, अगर डिफॉल्ट होता है तो बैंक लोन लेने वाले की संपत्ति या वेतन को जब्त कर सकता है. यह प्रक्रिया उन्हें भारी वित्तीय कठिनाइयों में डाल सकती है. इस प्रक्रिया के तहत, डिफॉल्टर पर भारी जुर्माना लग सकता है या उन्हें जेल की सजा भी हो सकती है.
बैंकों की रिकवरी तकनीक
जब बैंकों को लगता है कि लोन चुकाने में ग्राहक असमर्थ है, तो वे आमतौर पर रिकवरी एजेंटों का सहारा लेते हैं. ये एजेंट डिफॉल्टर के साथ संपर्क कर चुकौती की मांग करते हैं. अगर समझौता नहीं हो पाता है, तो वे लीगल नोटिस जारी करते हैं और कर्जदार पर दबाव बनाने के लिए और भी कदम उठा सकते हैं.
आरबीआई की भूमिका और निर्देश
आरबीआई ने लोन डिफॉल्टर के खिलाफ कार्रवाई करते समय बैंकों को कुछ विशेष दिशा-निर्देश दिए हैं. इन निर्देशों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोन चुकाने में असमर्थ ग्राहकों के साथ न्यायसंगत और उचित तरीके से पेश आया जाए. इसमें उचित नोटिस देना और ग्राहकों को उनकी स्थिति सुधारने का मौका देना शामिल है.