Property Rule: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक पुराने मामले में फैसला सुनाया है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि बिना उचित मुआवजे के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति छीनी नहीं जा सकती है. इस फैसले के माध्यम से संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता को बल दिया गया है.
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल की गई अपील पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े इस मामले में फैसला दिया. बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में भू-स्वामियों को उचित मुआवजा दिलाने की दिशा में यह फैसला महत्वपूर्ण रहा.
राज्य सरकार की जिम्मेदारियों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने राज्य सरकार के रवैये पर सख्त टिप्पणी की. उन्होंने सरकार को अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए अधिक सक्रिय और जिम्मेदार बनने की नसीहत दी. सरकार को दो महीने के अंदर भू-स्वामियों को मुआवजा देने का आदेश दिया गया है.
उचित मुआवजे की गणना
सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की गणना करने के लिए 2019 के बाजार मूल्य का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया. इससे स्पष्ट होता है कि अदालत ने समय के साथ बदलते हुए संपत्ति के मूल्य को महत्व दिया है और यह भी सुनिश्चित किया है कि भू-स्वामियों को उनकी संपत्ति का उचित मूल्य प्राप्त हो.
संपत्ति के संवैधानिक अधिकार और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
1978 के 44वें संविधान संशोधन के बाद संपत्ति का अधिकार मौलिक नहीं रह गया है, लेकिन अनुच्छेद 300-ए के तहत यह एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रेखांकित किया है कि किसी भी व्यक्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता.