माता-पिता अपनी संतान से प्रॉपर्टी वापस ले सकते है या नही, जाने क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला Supreme Court Decision

Shiv Shankar
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Supreme Court Decision: देश की सर्वोच्च अदालत ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो लाखों बुजुर्ग माता-पिता के लिए राहत की खबर बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि बच्चे अपने माता-पिता से प्रॉपर्टी या गिफ्ट लेकर उनकी सेवा और देखभाल नहीं करते हैं, तो माता-पिता उन संपत्तियों को वापस ले सकते हैं। यह फैसला न केवल नैतिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि यह बुजुर्गों के कानूनी अधिकारों की भी रक्षा करता है।

क्या है पूरा मामला ?

इस मामले की शुरुआत एक बुजुर्ग महिला की याचिका से हुई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे ने उनसे प्रॉपर्टी ट्रांसफर करवाई और उसके बाद उनकी देखभाल करना बंद कर दिया। महिला ने अदालत से अनुरोध किया कि उनके बेटे को दी गई प्रॉपर्टी की गिफ्ट डीड रद्द की जाए क्योंकि बेटा अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया।

कोर्ट की टिप्पणी बुजुर्गों की अनदेखी नहीं होगी बर्दाश्त

अदालत ने कहा कि यदि कोई बेटा या बेटी माता-पिता से संपत्ति या गिफ्ट लेकर बाद में उन्हें छोड़ देता है, तो ऐसे मामलों में ‘वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007’ (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत संपत्ति ट्रांसफर को शून्य माना जाएगा। इस एक्ट का उद्देश्य बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करना है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

इससे पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा था कि यदि गिफ्ट डीड में पहले से यह शर्त न हो कि बच्चे माता-पिता की सेवा करेंगे, तो उस गिफ्ट को रद्द नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए कहा कि बुजुर्गों की भलाई को ध्यान में रखते हुए इस कानून की व्याख्या उदार तरीके से की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का यह फैसला रद्द कर दिया और इसे बुजुर्गों के खिलाफ बताया।

कानून के तहत क्या हैं बुजुर्गों के अधिकार ?

वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 की धारा 23 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति किसी उत्तराधिकारी को इस शर्त पर देता है कि वह उसकी सेवा करेगा और वह उत्तराधिकारी यह करने में विफल रहता है, तो संपत्ति का ट्रांसफर ‘शून्य’ (Void) माना जाएगा। इसका अर्थ है कि बुजुर्ग व्यक्ति उसे वापस लेने का अधिकार रखता है।

संपत्ति ट्रांसफर होगा रद्द, जब हो अनदेखी या धोखाधड़ी

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर ट्रांसफर की गई संपत्ति बुजुर्ग व्यक्ति की सहमति के बिना या धोखे से ली गई है, या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव डालकर ली गई है, तो वह गिफ्ट भी रद्द की जा सकती है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि बुजुर्गों को मानसिक, शारीरिक या आर्थिक रूप से प्रताड़ित करने वाले लोग बच नहीं सकते।

संयुक्त परिवार की परंपरा कमजोर होने के बाद जरूरी हुआ यह कानून

आज के समय में जब संयुक्त परिवार प्रणाली कमजोर होती जा रही है, और बुजुर्ग लोग अकेले रह जाते हैं, ऐसे में इस तरह के फैसले एक मजबूत सामाजिक संदेश देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया है कि कानून का उद्देश्य सिर्फ कानूनी विवरण नहीं बल्कि सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित करना है।

क्या करना चाहिए माता-पिता को संपत्ति देने से पहले ?

माता-पिता को अपनी संपत्ति ट्रांसफर करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

  • गिफ्ट डीड में सेवा और देखभाल की स्पष्ट शर्तें शामिल करें।
  • ट्रांसफर से पहले उचित कानूनी सलाह लें।
  • किसी पर भी अंधविश्वास के चलते बड़ा निर्णय न लें।
  • यदि बच्चे सेवा न करें तो स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराएं।

कैसे कर सकते हैं बुजुर्ग शिकायत ?

वरिष्ठ नागरिकों को यदि लगे कि उनके साथ अन्याय हुआ है, तो वे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह अधिनियम राज्य सरकारों को यह अधिकार देता है कि वे वृद्धजनों की शिकायतों का जल्द समाधान करें।

कानून की नई व्याख्या से बुजुर्गों को मिला सहारा

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बुजुर्गों को ना सिर्फ कानूनी ताकत देता है बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव की भी नींव रखता है। यह फैसला संदेश देता है कि जो संतान अपने माता-पिता की सेवा नहीं करते, उन्हें संपत्ति का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। अब बुजुर्ग डर के साए में नहीं, बल्कि कानून के सुरक्षा में अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकते हैं।

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